घटिया और गैरबराबरी की शिक्षा की वकालत करता है ‘शिक्षा का अधिकार’ बिल: डॉ. अनिल सदगोपाल

Thursday, August 27, 2009

डॉ. अनिल सदगोपाल देश के जाने-माने शिक्षाविद् हैं और केंद्र की संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा लाए गए ‘शिक्षा का अधिकार’ बिल के खिलाफ पूरे देश में जन जागरण अभियान का नेतृत्‍व कर रहे हैं। वे इस बिल का विरोध करने के लिए बने ‘ऑल इंडिया फोरम फॉर राइट टू एजकेशन’ के सह अध्‍यक्ष हैं। डॉ. सदगोपाल 2005 में‘शिक्षा का अधिकार’ बिल पर काम करने के लिए वर्तमान केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्‍बल के नेतृत्‍व में बनाए गए ‘केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ (सीएबीई) के सदस्‍य भी रहे हैं। तब भी उन्‍होंने इस बिल के वर्तमान स्‍वरूप का विरोध किया था और कई आपत्तियां दर्ज कराईं थी, लेकिन उन्‍हें अनसुना कर दिया गया। डॉ. सदगोपाल का कहना है कि यूपीए सरकार इस बिल को ऐतिहासिक उपलब्धि करार दे रही है, लेकिन हकीकत में ये देश की जनता के साथ एक ऐतिहासिक धोखा है। ‘शिक्षा का अधिकार’ बिल से जुड़े मुद्दों पर ‘मेरी खबर डॉट कॉम’ के मुख्‍य उपसंपादक राजीव रंजन ने डॉ. अनिल सदगोपाल से विस्‍तृत बातचीत की, पेश हैं संपादित अंश:

आपको इस बिल पर आपत्ति है या इसके प्रारूप पर?
शिक्षा का अधिकार सबको मिलना चाहिए, हम इसका विरोध हम नहीं करते। लेकिन, यह बिल शिक्षा का अधिकार देता नहीं है, बल्कि संविधान में जो अधिकार दिए गए हैं, उसे भी छीनता है। यह बिल अधिकार देने के जो दावे करता भी है, वे भी विकृत रूप से दिए गए हैं। उससे बच्‍चों को गैरबराबरी की घटिया शिक्षा और भेदभावपूर्ण शिक्षा मिलती रहेगी।
आपके अनुसार इस बिल में क्‍या खामियां हैं? आपकी मुख्‍य आपत्तियां क्‍या हैं?

सबसे पहले छह साल से नीचे बच्‍चों को हमारा संविधान संतुलित आहार, पूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य और प्राथमिक शिक्षा का अधिकार देता है। हमारे देश में ऐसे 17 करोड़ बच्‍चे हैं। इस नए कानून के जरिए उन 17 करोड़ बच्‍चों का अधिकार छीन लिया गया है, क्‍योंकि इस नए कानून में सिर्फ छह से 14 साल तक के बच्‍चों की बात की जा रही है।

इसके साथ, इन बच्‍चों (छह से 14 साल तक) को मु्फ्त शिक्षा दी जाएगी उस रीति से, जो सरकार कानून बनाकर तय करेगी। यानी यह अधिकार भी एक शर्त के तहत दिया जा रहा है। शर्त सरकार के हाथ में है। सरकार कौन-कौन सी शर्तें लगाती है, यह सरकार के हाथ में है। सरकार क्‍या-क्‍या देती है, क्‍या नहीं देती है, यह सरकार के हाथ में है। इसमें सरकार ने कई तरह की शर्तें लगा दी हैं, जो मौलिक अधिकार की अवधारणा पर चोट है, इसलिए हम इसका‍ विरोध कर रहे हैं। मौलिक अधिकार गैरबराबरी, घटिया और भेदभाव शिक्षा का नहीं हो सकता और अगर आपका उत्‍तर इन तीनों सवालों के जवाब में ना है, तो फिर आप इस बिल के साथ खड़े नहीं हो सकते। ये बिल इन तीनों मापदंडों पर खरा नहीं उतरता इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं।

तीसरी बात, इसमें जितने प्रावधान हैं, वे कुल मिलाकर निजीकरण और बाजारीकरण को बढ़ावा देते हैं। यह बिल पास होने के बाद निजी स्‍कूलों की संख्‍या में तेजी से इजाफा होगा। सरकारी स्‍कूलों की व्‍यवस्‍था कालांतर में ध्‍वस्‍त हो जाएगी। उनकी गुणवत्‍ता गिर जाएगी। मां-बाप और अभिभावक अपने बच्‍चों को वहां से‍ निकाल लेंगे और सस्‍ते प्राइवेट स्‍कूलों में भर्ती कराते जाएंगे। यह निजीकरण और बाजारीकरण की रफ्तार को बढ़ावा देने वाला है।

आपको ऐसा क्‍यों लगता है कि ये बिल निजीकरण और बाजारीकरण को बढ़ावा देगा? इस धारणा के पीछे क्‍या लॉजिक है?
कई लॉजिक हैं। इस बिल में एक स्‍कूल के न्‍यूनतम मानदंडों का शेड्यूल दिया गया है, वो घटिया है। यानी जो हिसाब आज दिया गया है, वह पहले से भी घटिया है। मैने वर्तमान सरकारी आंकड़ों को देखकर हिसाब लगाया है कि दो-तिहाई प्राइमरी स्‍कूलों पर इस बिल से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वे जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे। हां एक-तिहाई‍ पर फर्क पड़ सकता है। बहुत चालाकी से बनाया गया है यह बिल।

दूसरी बात, मिडल-प्राइमरी स्‍कूल (छठी से आठवीं कक्षा तक) में उदाहरण के तौर पर शिक्षक और विद्यार्थियों का अनुपात 35:1 है। यानी 35 बच्‍चों पर एक शिक्षक। इस बिल में भी यही कहा गया है, जबकि आज भी कई स्‍कूलों में यह अनुपात 29:1 और कई जगह 34:1 का है। इनकी संख्‍या तेजी से बढ़ी है। यानी जो मौजूदा हालात हैं, इस बिल में उसे और ज्‍यादा बुरा करने की बात कही जा रही है। मैं कई बार मजाक में पूछता हूं कि क्‍या आप जिन स्‍कूलों में 29 और 34 छात्रों पर एक टीचर हैं, उन स्‍कूलों से अतिरिक्‍त शिक्षकों को वापस बुलाने वाले हैं?

अभी तक मिडिल स्‍कूलों में कला के लिए कोई अलग शिक्षक होगा या खेलकूद के लिए कोई अलग शिक्षक होगा, इस बिल में इस पर कोई दृष्टि नहीं डाली गई है।

यह इस बिल का छठा ड्राफ्ट है, जो यूपीए सरकार ने पास किया है। इससे पहले पांचवां ड्रॉफ्ट फरवरी 2008 में पास किया गया था, जिसके नीचे एक लाइन खींचकर लिखा गया था- वांछनीय। अंग्रेजी में लिखा था- डिजायरेबल। इसके तहत पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए बिजली का कनेक्‍शन, एक कंप्‍यूटर, टेलीफोन कनेक्‍शन डिजायरेबल था। जब यह छठा ड्रॉफ्ट सामने आया तो यह वांछनीय लाइन पूरी तरह साफ हो गई। यानी अब पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए ये बातें जरूरी तो छोडि़ए, वांछनीय भी नहीं है। ये तीनों चीजें भी नहीं‍ मिलने वाली हैं। यानी सरकारी स्‍कूलों की जो हालत अब है, वह और भी बुरी होने वाली है।

एक और बात इसमें लिखी गई है कि सरकारी स्‍कूल टीचरों से गैर शिक्षकीय काम नहीं कराए जाएंगे सिवाए जनगणना, पंचायत से लेकर संसद तक के चुनावों और आपदा राहत कामों के। आपदा राहत को परिभाषित नहीं किया गया। यानी जनगणना और चुनावों के अलावा बाकी सब काम अब आपदा राहत में डाल दिए जाएंगे। चाहे वो बच्‍चों को दवाई पिलाने का काम हो या कोई महामारी फैल रही हो, उसमें सरकारी स्‍कूल के टीचर लगा दिए जाएंगे। और, उसी दौरान प्राइवेट स्‍कूल के टीचर पढ़ाते रहेंगे।

मैं इसलिए कहता हूं कि हमारे सरकारी स्‍कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्‍चे, आदिवासी, दलित और मुस्लिम बच्‍चे हमेशा भारत के लोकतंत्र के लिए त्‍याग करते हैं क्‍योंकि भारत के लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए उनकी पढ़ाई खराब की जाती है। प्राइवेट स्‍कूल के बच्‍चे भारत के लोकतंत्र के लिए कोई काम नहीं करते हैं क्‍योंकि उनकी पढ़ाई लगातार चलती रहती है। यह सब काम सरकारी स्‍कूल और प्राइवेट स्‍कूल के बीच भेदभाव बढ़ाते हैं, तो अपने आप प्राइवेट स्‍कूलों का परफॉर्मेंस अच्‍छा होगा। प्राइवेट स्‍कूलों का रिजल्‍ट अच्‍छा आता रहेगा।

फिर उनके द्वारा जो फीस ऐंठी जा रही है, उन पर नियंत्रण के लिए कोई जिम्‍मेदारी राज्‍य सरकार को नहीं दी गई है। राज्‍य सरकार के कर्तव्‍यों की जो सूची है, उसमें कहीं नहीं लिखा है कि उनका काम प्राइवेट स्‍कूलों की फीस को नियंत्रित करना है। पहले लिखा था किसी जमाने में। जब तीसरा ड्रॉफ्ट आया था, उसमें लिखा था। बाद में गायब कर दिया गया। तो, बड़े सोचे-समझे तरीके से प्राइवेट स्‍कूलों के खिलाफ जो प्रावधान थे, वो निकाल दिए गए।

अब देखिए विडंबना क्‍या होती है। दिल्‍ली राज्‍य में ‘दिल्‍ली स्‍टेट एजुकेशन एक्‍ट 1973’ लागू होता है। उसमें लिखा है कि कोई भी प्राइवेट स्‍कूल बिना सरकार की अनु‍मति के अपनी फीस नहीं बढ़ा सकता। यहां के प्राइवेट स्‍कूलों ने मनमाने तरीके से अपनी फीस बढ़ा दी। यहां के अभिभावकों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, डाटा इकट्ठा किया और सरकार को बताया। सरकार ने इस एक्‍ट के तहत ही कमेटी बना दी प्राइवेट स्‍कूलों की फीस को नियंत्रित करने के लिए। कमेटी बेकार रही। वो प्राइवेट स्‍कूल लॉबी से डर गयी। लेकिन, उस एक्‍ट में यह प्रावधान है कि कमेटी बन सकती है। लेकिन, अब शिक्षा के अधिकार बिल को पूरे देश में लागू किया जा रहा है।

सरकार नहीं चाहती कि प्राइवेट स्‍कूलों पर किसी तरह का नियंत्रण हो। इसका मतलब यह है कि सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। सरकारी स्‍कूल व्‍यवस्‍था को ध्‍वस्‍त किया जा रहा है। तो ये तरीके होते हैं।

इसमें बिल में प्रावधान है कि प्राइवेट स्‍कूलों को 25 फीसदी गरीब बच्‍चों को पढ़ाने के लिए कहा जाएगा। यह बहुत ही फसाद वाला मामला है। इसका गहराई से अध्‍ययन कीजिए। इस समय औसतन राज्‍य सरकारें एक बच्‍चे पर औसतन दो से ढाई हजार रुपए प्रति वर्ष खर्च करती हैं। यह खर्च राज्‍य सरकार प्राईवेट स्‍कूलों को देगी, कानून में ऐसा कहा गया है।

अब इस मामले पर गौर करें तो पाएंगे कि दो प्रकार के स्‍कूल होंगे- एक, जिनकी फीस ढाई हजार रुपए सालाना से कम है और दूसरे, जिनकी फीस सालाना ढाई हजार से ज्‍यादा है। जिन स्‍कूलों की फीस ढाई हजार रुपए से कम है, वे अपनी फीस बढ़ा देंगे। जिन स्‍कूलों की फीस पहले से ही ढाई हजार से ज्‍यादा है वो क्‍या करेंगे? वो इन बच्‍चों पर फालतू पैसा नहीं खर्च करेंगे। नाप तोल कर ढाई हजार रुपए तक खर्च करेंगे।

और, इसका मॉडल दिल्‍ली पब्लिक स्‍कूल ने दस साल पहले तय कर दिया था। वो शाम को चार बजे आसपास के झुग्‍गी-झोपड़ी के बच्‍चों को बुलाकर उन्‍हें पढ़ाते थे। उस समय, जब अमीर बच्‍चे अपने घर चले जाते थे। उन गरीब बच्‍चों को किसी वोलेंटरी टीचर से पढ़वाते। वो तो 2500 रुपए भी खर्च नहीं किया करते थे। जब उन्‍होंने यह कार्यक्रम शुरू किया तो हमने उनकी प्राचार्या को पत्र लिखा। उनकी प्राचार्या को बाद में ‘पद्मश्री’ भी मिला। हम लोगों ने उस समय कहा था कि यह वो मॉडल है, जिसमें सुबह अच्‍छी शिक्षा दी जाती है और शाम को समानता की शिक्षा दी जाती है।

ये मॉडल पहले से शुरु हो गया है। भोपाल में कई स्‍कूल हैं, जिन्‍होंने ये जानते हुए कि ये मॉडल शुरू होने वाला है, इसे पहले से शुरू कर दिया है। यह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) का मॉडल है। अगर आप स्‍कूल वाउचर के मॉडल से परिचित हैं, तो इसका मतलब ही यही है कि सरकार कहेगी बच्‍चों से आप उस प्राइवेट स्‍कूल में जाओ हम आपकी फीस उस स्‍कूल में भर देंगे। तो, यह स्‍कूल वाउचर का इंडियन मॉडल है।

अगर प्राइवेट स्‍कूलों को 2500 रुपए फीस के नाम पर दे ही दिए गए तो वहां तो 2500 से ज्‍यादा भी फीस ली जाती है। पिकनिक या अन्य तरह के खर्चे होते हैं। फंक्‍शन के नाम पर, पेंटिंग, कंप्‍यूटर फीस के नाम पर पैसे लिए जाते हैं। वो फीस ये बच्‍चे कहां से लेकर आएंगे, इस बात का इसमें कोई जिक्र नहीं है। अंत में इन बच्‍चों से वो वाली फीस तो नहीं ली जाएगी, लेकिन इन्‍हें टप्‍पर के नीचे पढ़ाया जाएगा।

आखिरकार, सरकार यह शिक्षा बच्‍चों को आठवीं क्‍लास तक दिलवाएगी क्‍योंकि अधिकार आठवीं कक्षा तक का है। उसके बाद उन बच्‍चों को बाहर निकाल दिया जाएगा।

कई बच्‍चे देर से शिक्षा शुरू करते हैं, तो मान लीजिए कि कोई बच्‍चा 14 साल की उम्र तक आठवीं तक पहुंच ही न पाए तो?

देखिए, यह तो उसमें लिख दिया है कि जो बच्‍चे 14 साल की उम्र तक पहुंच जाते हैं और उनकी आठवीं तक की शिक्षा पूरी नहीं हो पाती है, तो सरकार उनको तब तक रखेगी जब तक उनकी आठवीं तक की शिक्षा पूरी नहीं हो जाती। ये प्राइवेट और पब्लिक दोनों स्‍कूलों में रखी जाएगी।

लेकिन, सवाल यह है कि आठवीं के बाद बच्‍चा क्‍या करेगा? आज आठवीं की कीमत क्‍या है, आप बताइए? बारहवीं तो कम से कम न्‍यूनतम जरूरत है उच्‍च शिक्षा की। चाहे वो इंजीनियरिंग की परीक्षा हो या मेडिकल की परीक्षा हो। जो बिल बारहवीं तक की शिक्षा की गारंटी नहीं देता, जो आपको उच्‍च शिक्षा के समान अवसर नहीं देता, आपको आगे जाने के अवसर नहीं देता, उसका क्‍या मतलब है?इसका मतलब है आपको पीछे रखा जा रहा है। यही हमारी तकलीफ है। यह बिल छह साल तक के बच्‍चों को अधिकार नहीं देता। बच्‍चों को कोई अधिकार नहीं देता। जो देता है, गैरबराबरी के देता है। इसलिए, हम इसका विरोध कर रहे हैं।

आप भी तो शिक्षा का अधिकार बिल पर काम करने के लिए बने केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्‍य थे?
मैं जब बोर्ड में था, तभी से इसका विरोध कर रहा हूं। उसी समय से मैं इसके खिलाफ आवाज उठा रहा हूं। मेरी 80 पेज की लिखित आपत्तियां कपिल सिब्‍बल कमिटी में दर्ज हैं।

मैने कपिल सिब्‍बल से पांच जून को आखिरी बैठक में कहा कि मैंने आपको 80 पेज के लिखित ऑब्‍जेक्‍शन दिए हैं, सारे डेटा के साथ, आप उन्‍हें कमेटी की रिपोर्ट और पब्लिक डेटा में शामिल कर लीजिए। उन्‍होंने पूछा कि उससे क्‍या होगा, तो मैने कहा कि उससे यह होगा कि यह रिकॉर्ड मौजूद रहेंगे। भविष्‍य में जो कोई शिक्षा का अध्‍येता इन कागजातों को देखेगा, वो कहेगा कि उस समय एक अक्‍लमंद व्‍यक्ति था, जो सही बात कर रहा था। तो, उन्‍होंने बात मान ली और मेरी आपत्तियां रिपोर्ट में शामिल कर लीं।
वो जान लेगा कि लड़ाई उस समय भी चल रही थी और आगे भी जारी रहेगी।

‘शिक्षा का अधिकार’ विधेयक पर अभी तक लोगों को कितना समझा पाए हैं आप?
इस मुद्दे पर कौन-कौन से लोग जुड़े हैं आपके साथ?
यह आसान काम नहीं रहा है। पिछले चार सालों में उन लोगों की संख्‍या काफी बढ़ी है, जो इस विवाद को समझने लगे हैं। मध्‍यम वर्ग के बीच इसे पहुंचाने में बहुत वक्‍त लगेगा क्‍योंकि वो प्राइवेट स्‍कूलों से जुडा़ हुआ है। उसे इन बातों को समझने में अभी वक्‍त लगेगा। मीडिया भी मध्‍यमवर्ग की बातें ही दिखाता है। अभी आपने यहां देखा कि कई राज्‍यों से लोग यहां आए हैं, नौजवानों में बहुत गुस्‍सा है। वे अपने स्‍तर पर लोगों को इसके बारे में जानकारी दे रहे हैं। ये जो अखिल भारतीय फोरम बना है, यह कपिल सिब्‍बल कमेटी के चार साल बाद बना है। जून में बना है। इसमें 12 राज्‍यों के शिक्षक और विद्यार्थी संघ अपनी खुशी से शामिल हुए हैं। हमने राष्‍ट्रपति के नाम ज्ञापन फाइल किया, तो हमने मेधा पाटकर को फोन किया, संदीप पांडे को फोन किया। तो वे इस पर हस्‍ताक्षर करने को राजी हो गए।

यह बात आज से चार साल पहले संभव नहीं थी। अब वे भी समझ गए हैं। वे जन-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहें है और समझ गए हैं कि शिक्षा भी आम लोगों के जीवन में एक अहम संसाधन है।

हमारा भोपाल में जो सम्‍मेलन हुआ, उसमें ‘नर्मदा बचाओ’ आंदोलन की लड़ाई लड़ने वाले जमीन से जुड़े लोग भी आए। बर्गी पर बांध बनाया गया है, उसका विरोध करने वाले लोग भी आए। मछली पकड़ने वाले लोग भी आए। मुझे ऐसे लोगों के आने की ज्‍यादा खुशी है। शिक्षक संगठन के लोग तो आ ही जाएंगे या नहीं भी आएंगे, लेकिन मुझे ऐसे लोगों के आने की ज्‍यादा खुशी है। यह सब नई बातें हैं, जो पहले नहीं थी।अगर इसी हिसाब से देश के बुद्धिजीवी आते रहें, तो तस्‍वीर बदल जाएगी।

इस तरह का गुस्‍सा अगर देश के बुद्धिजीवियों में आ जाए तो यह लड़ाई और मजबूत हो जाएगी। विश्‍व बैंक ने अपनी जो नीतियां देश पर थोपी हैं, वो देश के बुद्धिजीवियों को चुप कराकर थोपी हैं। अगर देश के बुद्धिजीवी 20 साल से बोलते रहते, तो देश की आज यह दुर्गति नहीं होती।

आप देखिएगा कि जैसे-जैसे प्राइवेट स्‍कूलों की फीसे बढ़ेगी, मध्‍यम वर्ग भी इसके खिलाफ खड़ा हो जाएगा।

चेंगा नदी की नई धार से एक गांव का अस्तित्व खतरे में

Tuesday, August 25, 2009







किशनगंज। नव निर्मित चेगापुल के पूर्व एवं प्रधानमंत्री सड़क के बीच नदी के कटाव के कारण एक नई धार सात मीटर की बनने से यातायात बंद हो चुका है। ज्ञात हो कि ठाकुरगंज से एनएच 31 तक पश्चिम बंगाल की सीमा मुरारीगच्छ के बीच तीन करोड़ की लागत से प्रधानमंत्री सड़क एवं इस सड़क के बीच बहने वाली चेगा नदी पर एक करोड़ 60 लाख की लागत से स्क्रू पाइल पुल का निर्माण किया गया है। दोनों कार्यों का निष्पादन तो हो गया पर स्थानीय जनता के मांग के बावजूद चेगा नदी पर बांध का काम नहीं किया गया। नतीजा सबके सामने है। साढ़े चार करोड़ से पूरा हुआ कार्य औचित्य-विहीन बन चुका है। कटावरोधी कार्य नहीं होने के चलते किसानों की केला एवं चाय के बागान नदी में समा रहे है। ग्रामीण विश्वनाथ, शिवनाथ, विनोद, दिनेश, सुबोध यादव, राजेश्वर कार्तिक लाल, रामजी यादव, रामस्वरूप यादव, जर्नादन आदि के घर कटाव से प्रभावित हो रहे है। नदी के नई धार बनने से नदी के बीच आ चूका इस गांव का ही अस्तित्व कभी भी मिट सकता है। वहीं पंचायत के मुखिया मोहनसिंह एवं सरपंच भी चेगा नदी के कटाव से परेशान दिखे तथा कहा कि यदि नये कटाव स्थल को तुरंत भर दिया जाय तो करोड़ों की लागत से निमृत सड़क एवं पुल लोगों के काम आएंगे ही इस गांव को बचाया जा सकता है



Saturday, August 22, 2009

ठाकुरगंज , भादव महोत्सव के अवसर पर बुधवार को रानी सती दादी की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। आकर्षण झांकी के साथ निकली कलश यात्रा नारायणी मंदिर से शुरू होकर नगर के विभिन्न मार्गो का परिभ्रमण करते हुए वापस मंदिर में समाप्त हुई । 51 कलशों के साथ निकली शोभायात्रा में शामिल पुरूष एवं महिलाएं राणी सती दादी के गोरवमय इतिहास के संबंध में नारा लगा रहे थे । ज्ञात हो मूलरूप से राजस्थान से जुड़े लोग रानी सती दादी की आराधना करते हे । ऐसी मान्यता है की अपने पति के मारे जाने पर नारायणी अपने पति के मौत के जिम्मेदार रियासत के राजा को मार पति तनघन कि साथ सती हो गई जो बाद में राणी सती दादी के रूप में विख्यात हुई । शोभायात्रा की सफलता के लिए राधेश्याम गाडोदिया, देवकी अग्रवाल , संजय मोर,भवर लाल शर्मा ,चन्द्रप्रकाश महेश्वरी , धनश्याम ,हेमराज शर्मा , गोपाल केजड़ीवाल ,श्याम केजड़ीवाल आदि सक्रिय थे।

पाट का मूल्य गिरने से किसान परेशां

Saturday, August 15, 2009


एक सप्ताह के अंदर पाट कीमतों में प्रति क्विंटल सात सौ रुपये की कमी से किसानों में मायूसी छा गई है। ध्हन के सूखे की चपेट में आने के बाद पाट ही लोगो की एक आशा की किरण थी / ठाकुरगंज , छतरगाछ जेसे बाजारों पिछले 08 अगस्त को जो पाट प्रति क्विंटल 25 सौ रुपये व्यापारियों द्वारा किसानों से खरीदा जा रहा था, वहीं पाट 12 तथा 13 अगस्त को 18 सौ रुपये प्रति क्विंटल खरीदा गया। एक तरफ महंगाई आसमान छू रही है,किसानों के थाली में दाल तथा कुल्फी में चाय पहुंच से दूर है। वहीं किसानों से जब उनका तैयार फसल खरीदी जाती है तो उन्हे औने-पौने दाम मिलता है। सरकारी स्तर पर भी पाट नही खरीदने के कारण बचोलिएय की मनमानी का शिकार कि़सान हो रहे है उ़पप्रमुख सोगेरा नाहीद का भी मानना है की सरकारी क्रय एजेंसी जेसीआई के द्वारा भी पाट खरीद चालू नहीं होने से किसान निजी हाथों में पाट बेंचने को विवश हैं। इस पूरे मामले में उपप्रमुख सोगेरा नाहीद ने जिला प्रशासन को तुरंत दखल देने की मांग करते हुए कहा कि सोमवार को जो पटुआ 2600 से 2700 रुपये बिका वहीं पटुआ चार दिनों के अंदर नौ सौ रुपये कम पर बिका है। ठाकुरगंज हटिया में किसानों की पाट खरीदने वाले महाजनों ने बताया कि कलकत्ता जहां पाट का मुख्य बाजार है, वहीं पर लगातार दाम में कमी के कारण यह स्थिति पैदा हुई है।




बादलो की आखं मिचोली से बने खुशनुमा माहोल के बीच ठाकुरगंज के स्कूली बच्चों सहित तमाम गणमान्य लोगों और आम नागरिकों ने स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को सरकारी एवं विभिन्न गैर सरकारी संस्थानों में धूमधाम से मनाया . ठाकुरगंज में स्वतंत्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम गांधी मेदान में हुआ जहा विधायक गोपाल अग्रवाल के द्वारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को लहराने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया . वही प्रखंड मुख्यालय में बीडीओ मनोजित दास की उपस्थिति में प्रखंड प्रमुख ने तिरंगा को लहराया उस वक्त उपप्रमुख सोगेरा नाहिद भी उपस्थिति थी । थानाध्यक्ष मितेश कुमार ने ठाकुरगंज थाना में तो नगर पचायत कार्यालय में मुख्य पार्षद नवीन यादव ने झंडोत्तोलन किया ।

ठाकुरगंज में एटीएम सेवा चालू, विधायक ने उद्धाटन

Tuesday, July 14, 2009




ठाकुरगंज - भारतीय स्टेट बैंक की ठाकुरगंज शाखा में एटीएम सेवा रविवार से शुरू हो गई । एक भव्य कार्यक्रम में स्थानीय जद यु विधायक गोपाल अग्रवाल ने फीता काटकर एटीएम का उद्घाटन किया। इस दौरान शाखा प्रबंधक विजय श्रीवास्तव, पूर्व शाखा प्रबंधक ए.के. घोष, जलेविया मोड़ शाखा प्रबंधक पी.के. सिंह के अलावा दर्जनों उपभोक्ता मौजूद थे। जिसमे दिलीप जैन, गोपाल केजड़ीवाल, ज्ञानचंद जैन, कैलाश जैन, मुरारी गाड़ोदिया, अरुण सिंह के अलावे बैंक कर्मी राजेन्द्र प्रसाद, निशांत, प्रियव्रत, सुशील सिंह, के.के. राय, तपन दत्ता आदि की मौजूदगी में शाखा प्रबंधक विजय श्रीवास्तव ने बताया कि आज ही के दिन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी संपूर्ण देश में राष्ट्रीय स्तर पर 1540 एटीएम का उद्घाटन किया है। ठाकुरगंज में एटीएम खुलने से लोगों में काफी हर्ष व्याप्त है तथा उपभोक्ताओं ने बैंक प्रबंधक को साधुवाद दिया है।

विधान परिषद चुनाव : 162 महिला प्रतिनिधियों ने डाले अपने मत



ठाकुरगंज - विधान परिषद चुनाव में ठाकुरगंज प्रखंड के 368 मतदाताओं में से 163 महिला मतदाता शामिल थी। जिसमें 162 महिला मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। डुमरिया पंचायत की मजीबुन निशा ने मतदान नहीं किया। मतदान स्थल से मिली जानकारी के अनुसार सोमवार को सुबह विधान परिषद के चुनाव में मतदान करने वाली पहले चार मतदाताओं में तीन महिला मतदाता थी। ज्ञात हो कि पहला मतदान नगर पंचायत के उपमुख्य पार्षद कृष्णा सिन्हा ने किया। वहीं दूसरा नगर पंचायत की वार्ड पार्षद सुशीला देवी ने किया। तीसरा मतदान प्रमुख नुरजहां बेगम तो चौथा उपप्रमुख सोगरा नाहीद ने। वहीं मतदान समाप्ति के चंद मिनट पहले पहुंची जिरनगच्छ पंचायत की मुखिया यासकीन बेगम ने मतदान किया। ज्ञात हो कि विधान परिषद के चुनाव में ठाकुरगंज में 368 मतदाताओं में 303 वार्ड पार्षद, 22 मुखिया, 31 पंचायत समिति सदस्य एवं 12 नगर पंचायत ठाकुरगंज के पार्षद है।

पहली सोमवारी: नदियों से जल लेकर श्रद्धालुओं ने किया जलाभिषेक



ठाकुरगंज - ऊं नमो: सिवाय एवं बोलबम जैसे गुंज के साथ मध्य रात्रि से ही महानंदा नदी से पावन जल लाकर ठाकुरगंज हर गौरी मंदिर में चठाया लोग मध्य रात्रि को ही अपने घरों से निकल नगर से सात किमी दूर महानंदा नदी से जल लेकर सावन के पहले सोमवारी को हर गौरी मंदिर चढ़ाया। सावन को देखते हुए मदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया / सुबह से ही शिवभक्तों द्वारा बाबा शिव पर जल चढ़ाया जा रहा है। इस अवसर पर संध्या काल में मंदिरों पर भजन कीर्तन का भी आयोजन किया गया।

Tuesday, July 7, 2009


ठाकुरगंज . भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा की मूर्तियों से सुसज्जिात रथयात्रा बुधवार को नगर में निकली। परंपरागत पूजा अर्चना के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकली रथयात्रा नगर का परिभ्रमण कर वापस मंदिर ले आया गया। रथ में लगी रस्सी को भक्तगण खींचते हुए पूरे नगर में घूमे। ज्ञात हो कि हर वर्ष आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियों से सुसज्जिात रथयात्रा निकलती है। रथयात्रा के दौरान स्थानीय विधायक गोपाल अग्रवाल के साथ कई लोगों ने शिरकत किया जिसमें देवकी अग्रवाल, शेखरचंद्र अग्रवाल, निरंजन मोर, गोविंद गाड़ोदिया, घनश्याम गाड़ोदिया, प्रकाश अग्रवाल, शिवभगवान अग्रवाल, चांदरतन अग्रवाल, वनवारी, व्रजेश यादव, रणधीर यादव, द्वारका, सोमनाथ, इंद्रकांत झा,बैकुंठ झा, पंकज भारद्वाज सक्रिय थे। पूरी यात्रा के दौरान थाना प्रभारी मितेश कुमार पूरे दल बल के साथ सक्रिय दिखे

ग्राम कचहरी के अधिकार

Monday, July 6, 2009

किशनगंज। ग्राम कचहरी को बिहार सरकार ने भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत अपार शक्तियां प्रदान कर दिया। किसी महिला पर लांक्षन लगाने पर सात साल तक की कैद की सजा ग्राम कचहरी में सुना सकती है।
धारा 140 में आम आदमी/जनसाधारण यदि किसी भी सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पोशाक पहनकर या टोकन धारित कर लोगों को ठगने का काम करे या धोखा दे तो उस आदमी को तीन महीने की जेल या 500 रुपये तक जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 142 में यह जानते हुए भी कि कोई जमघट गैर कानूनी है, अगर कोई व्यक्ति उसमें शामिल होता है तो वह गेर कानूनी जमघट का सदस्य माना जाएगा।
धारा 143 में गैर कानूनी जमघट में जाकर शामिल होने वाले व्यक्ति को छह महीने की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
धारा 145 : गैर कानूनी जमघट जहां लगा रहता है और गैर कानूनी जमघट को हटाने का सरकारी आदेश दिया जा चुका है, फिर भी अगर कोई व्यक्ति गैर कानूनी जमघट में बना रहेगा तो उसे दो साल की कैद या जुर्माना दोनों से दंडित किया जा सकेगा।
धारा-147 : जो व्यक्ति दंगा/बल्वा करने का दोषी पाया जाता है उसे दो साल का जेल या जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है। पांच या उससे अधिक व्यक्ति के जमाव को बिखर जाने का समादेश जाने के पश्चात भी जो उसमें सम्मिलित होगा या बना रहेगा, उसे छह महीने तक जेल या जुर्माना दोनों सजा दी जा सकत है।
धारा-153 : कोई आदमी दंगा करने के लिए उकसाए या उत्तेजित करे और दंगा हो जाये तो उकसाने वाले व्यक्ति को एक साल तक कैद या फाइन या दोनों किया जा सकता है। और यदि दंगा नहीं हो, तो छह महीने की कैद या फाइन या दोनों प्रकार से दंडित किया जा सकता है।
धारा-160 : कोई व्यक्ति लोक स्थान में लड़कर लोकशांति में विधन् डाले और हंगामा खड़का करे तो उसे एक महीने की कैद या एक सौ रुपये जुर्माना या दोनों तरह की सजा हो सकती है।
धारा-172 : जो व्यक्ति किसी लोकसेवक द्वारा निकाले गये समन,सूचना या आदेश की तामिला से बचने के लिए फरार हो जाए,उस व्यक्ति को एक माह जेल या 500 रुपये जुर्मना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-174 : लोक सेवक द्वारा निकाले गये नोटिस पर कोई आदमी जानबूझकर निश्चित स्थान और समय पर हाजिर नहीं होता है तो उस आदमी को एक महीने की कैद या 500 रुपये तक जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।

धारा-178 : जब किसी आदमी को सत्य कथन के लिए लोक सेवक द्वारा शपथ लेने के लिए कहा जाए और वह आदमी शपथ नहीं ले, तो उसे छह माह की जेल या 1000 रुपये तक का जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।

धारा-179 : कानूनी नियम के अनुसार लोक सेवक किसी आदमी से सवाल पूछे और वह उसका उत्तर नहीं दे या देने से इंकार करे, तो उसे छह माह की कैद या 1000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।

धारा-269 : यदि कोई व्यक्ति असावधानी से ऐसा काम करे जिससे गांव घर में छुआ-छुत की बीमारी फैल जाए और आदमी का जीना मुश्किल हो जाए तो उस व्यक्ति को छह माह की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

धारा-277 : सार्वजनिक जल स्त्रोत या तालाब के पानी को कोई गंदा करे और वह पानी काम के लायक नहीं रहे तो उस आदमी को तीन महीने की जेल या 500 रुपये जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।

धारा-283 : कोई व्यक्ति अगर किसी लोक रास्ते पर आने जाने में बाधा उत्पन्न करे तो उसे दो सौ रुपये तक जुर्माना की सजा हो सकती है।
धारा-285 : अगर कोई व्यक्ति आग लेकर या आसानी से आग पकड़ने वाली कोई चीज लेकर मानव जीवन को खतरे में डालने का काम करे तो उसे छह महीने की जेल या एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों की सजा एक साथ हो सकती है।
धारा-286 : अगर कोई व्यक्ति बम या विस्फोटक ले जा रहा हो या जानबूझकर या असावधानी से ऐसा काम कर डाले जिसमें लोगों को खतरा और क्षति पहुंचे तो उस व्यक्ति को छह महीने तक जेल या एक हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
धारा-289 : जिनके पशु आदमी को घायल करे या लोगों में संकट पैदा करे और वे उन्हे संभाल कर रखने का कोई इंतजाम न करे तो उन्हे छह महीने जेल या एक हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-290 : जो व्यक्ति किसी ऐसे मामले में लोक न्यूसेन्स करे अथवा ऐसा काम करे जिससे समाज को परेशानी हो और जो भारतीय दंड संहिता द्वारा अन्यथा दंडनीय नहीं है, उसे दो सौ रुपये तक के जुर्माना की सजा हो सकती है।
धारा-294: जो व्यक्ति किसी लोक स्थान में अश्लील कार्य करे अथवा गंदा गीत गाए तो उसे तीन महीने की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
धारा-294 अ : अवैध लाटरी निकालने के प्रयोजन से लाटरी आफिस रखने पर उस व्यक्ति को छह महीने जेल की सजा या जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है और वह लाटरी टिकट के जीतने वालों को रुपया या सामान देने की घोषणा करे तो उस पर एक हजार रुपये का जुर्माना किया जा सकता है।
धारा-323 : अगर कोई आदमी जान बुझकर किसी को चोट पहुंचाता है तो उसे एक साल की कैद या एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
धारा-334 : अगर कोई व्यक्ति किसी के अचानक उकसाने अथवा भड़काने पर किसी के साथ मारपीट करे और उसे घायल कर दे तो उकसाने वाले व्यक्ति को एक महीने की जेल या पांच सौ रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
धारा-336 : अगर कोई व्यक्ति इतना उतावला होकर काम करे जिससे किसी के जीवन अथवा कुशलता पर संकट उत्पन्न हो जाए तो उसे तीन महीने जेल या 250 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
धारा-341 : अगर कोई व्यक्ति किसी को गलत ढंग से बाधा डाले तो उसे एक महीने का जेल या पांच सौ रुपये तक जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है।
धारा-352 : बिना किसी गंभीर उसकावे के किसी व्यक्ति पर हमला करने पर उसे तीन महीने की जेल या पांच सौ रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
धारा-356 : किसी की कोई सम्पत्ति चोरी करने की चेष्टा में अगर कोई व्यक्ति आपराधिक बल का प्रयोग करता है तो उसे दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
धारा-357 : किसी आदमी को बलपूर्वक रोकने की चेष्टा करने वाले व्यक्ति को एक साल जेल या एक हजार रुपये का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।
धारा-358 : बहुत चिढ़ाने के बाद वह व्यक्ति गुस्से से हमला कर दे तो हमल करने वाले व्यक्ति को एक महीना जेल या दो सौ रुपये तक जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।
धारा-374 : यदि कोई आदमी किसी को फंसाकर उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करने को बाध्य करे तो उस आदमी को एक साल तक जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
धारा-403 : कोई आदमी यदि बेईमानी कर किसी अन्य व्यक्ति की चल संपत्ति का अपने लिए उपयोग करने लगता है तो उसे दो साल की कैद या जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।
धारा-426: कोई आदमी खराब नियत से लोक संपत्ति या किसी की निजी संपत्ति को बरबाद करता है तो उसे तीन माह जेल या जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।
धारा-428 : अगर कोई आदमी खराब नीयत से 10 रुपये से अधिक कीमत के पशु को जान से मारता है, उसका अंग तोड़ता है या विष देता है तो उसे दो साल तक का जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-430 : यदि कोई आदमी खराब नियत से कृषि कार्य के लिए पानी में कमी और भोजन तथा आदमी एवं पशु के लिए पीने के पानी में कमी उत्पन्न करे तो उसे दो साल तक जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-447: जो कोई दूसरे की संपत्ति में बिना पूछे या जबर्दस्ती आपराधिक उद्देश्य से घुस जाये तो उस आदमी को तीन महीने की जेल या पांच सौ रुपये तक जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।
धारा-448 : किसी के घर में बिना अधिकार के आपराधिक उद्देश्य से घुसने से उसे एक साल की जेल या एक हजार रुपये जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-502 : जो कोई व्यक्ति मुद्रित या उत्कीर्ण पदार्थ को जिसमें हानिहारक तत्व सम्मिलित है, बेचेगा या बेचने का आफर करेगा वह दो वर्ष के सादे कारावास या जुर्माना या दोनो से दंडित किया जा सकता है।
धारा-504 : जो व्यक्ति जानबूझकर किसी की इतनी बेइज्जाती करे कि वह आदमी उत्तेजित होकर लोक शांति भंग करे या कोई दूसरा अपराध करे तो उसे दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-506 : किसी को जान से मारने या हाथ पांव तोड़ देने अथवा उसकी संपत्ति या सामान को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से धमकी देने वाले व्यक्ति को दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। यदि धमकी किसी महिला की पवित्रता पर लांछन लगाने से संबंधित हो तो साल साल कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।

धारा-510 : अगर कोई व्यक्ति शराब पीकर नशे की हालत में किसी लोक स्थान में या वर्जित स्थान में घुस जाए और लोगों को परेशानी करे तो उसे चौबीस घंटे जेल या दस रुपये तक जुर्माना या दोनो सजा हो सकती है।